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सुख का कारण ज्ञान है आचार्य श्री सुबल सागर जी महाराज

Chandigarh:धर्म सभा को संबोधित करते हुए अचार्य श्री ने कहा कि इस संसार रूपी समुद्र में प्रत्येक जीव सुख को चाहता है और उसके प्राप्त करने का पुरुषार्थ भी करता है लेकिन वह सुख प्राप्त होता नहीं है अगर कोई जीव माने कि वह सुखी हो गया है तो वे उस जीव की मूर्खता या सुखाभास है क्योंकि हमारे आचार्यों महाराज ने सुख का कारण ज्ञान कहा है लेकिन ज्ञान तो प्रत्येक जीव के पास  है तो उसे सुखी होना चाहिए।
ज्ञान भी दो प्रकार का होता है :-
1:- लौकिक ज्ञान
2:- पारलौकिक ज्ञान

संसार में रहने वाले प्रत्येक व्यक्ति को लौकिक ज्ञान लेकिन यह लौकिक ज्ञान इस ही भाव में जीव को सुखी करता है यह भी संभव नहीं है हम देखते हैं अच्छे से अच्छे पढ़े-लिखे डॉक्टर, इंजीनियर,वकील, सी.ए आदि के पद पर बैठने वाले व्यक्ति सभी ही कहीं ना कहीं से दु:खी देखे जाते हैं फिर ऐसा ज्ञान हमें कैसे सुखी कर सकता है।

एक ज्ञान पारलौकिक ज्ञान या अध्यात्मिक ज्ञान ही हमें इस भव में और पर भव में दोनों तरह सुख पहुंचता है हमारे भगवानों ने इसी ज्ञान के माध्यम से अनंत सुख को प्राप्त किया है।
इस अनंत सुख को प्राप्त करने के लिए उन्होंने सब कुछ करना छोड़कर मात्र पैर पर पैर रख लिया है और हाथ पर हाथ रख लिया है और अपनी आंखों को नाक पर रख लिया है और शेष इन्द्रियों को जीत कर मात्र अपने आत्मा के ज्ञान में तललीन हो गए। उस ध्यान के द्वारा ही एकाग्र मन हो कर अपने अनंत सुख के स्थान परम पद  को प्राप्त कर लिया अर्थात् परमात्मा हो गए हैं जिनकी हम पूजा, भक्ति, आराधना करते हैं उनके जैसे ही बनने के लिए।
श्री दिगम्बर जैन मंदिर सैक्टर 27बी चंडीगढ़ में विराजमान आचार्य श्री 108 सुबल सागर जी महाराज ने संबोधन दिया।
यह जानकारी संघस्थ बा. ब्र. गुंजा दीदी एवं श्री धर्म बहादुर जैन जी ने दी ।

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