चंडीगढ़, 7 जुलाई: पार्किंसंस रोग पूरी दुनिया में दूसरा सबसे आम न्यूरो डिजेनरेटिव रोग है। इसके लक्षणों को अक्सर बुढ़ापे के साथ नजरअंदाज कर दिया जाता है या गलत निदान किया जाता है और कई बुजुर्ग रोगियों का इलाज नहीं किया जाता है। पार्किंसंस रोग के सामान्य लक्षणों में दैनिक गतिविधियों में धीमापन, शरीर में अकड़न, हाथ, पैर और जबड़े का हिलना या कांपना, चलने में कठिनाई या चलते समय संतुलन खोना शामिल हैं।
हाल ही में पारस हेल्थ, पंचकुला में पार्किंसंस रोग से पीड़ित एक 64 वर्षीय पुरुष की डीप ब्रेन स्टिमुलेशन (डीबीएस) सर्जरी सफलतापूर्वक की गई। इसके साथ ही पारस हेल्थ पंचकुला अब पार्किंसंस के मरीजों के लिए यह एडवांस ट्रीटमेंट डीबीएस सर्जरी करने वाला रीजन का पहला अस्पताल बन गया है यहाँ यह सर्जरी उत्तर भारत की पहली औपचारिक रूप से प्रशिक्षित व डीबीएस कार्यक्रम के लिए लंदन और सिंगापुर में प्रशिक्षित पार्किंसंस विशेषज्ञ न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. जसलोवलीन सिद्धू व न्यूरोसर्जन डॉ. अमन बातिश द्वारा की गई।
मरीज़ अब पारस हेल्थ, पंचकुला में ऐसी विशेष सेवाओं का लाभ उठा सकते हैं और उन्हें पार्किंसंस रोग की इस एडवांस सर्जरी के लिए बाहर जाने की जरुरत नहीं पड़ेगी।
यह सर्जरी उत्तर भारत की पहली औपचारिक रूप से प्रशिक्षित व डीबीएस कार्यक्रम के लिए लंदन और सिंगापुर में प्रशिक्षित पार्किंसंस विशेषज्ञ न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. जसलोवलीन सिद्धू व डॉ. अमन बातिश न्यूरोसर्जन द्वारा की गई।
मरीज, अमनप्रीत सिंह (बदला हुआ नाम) में पिछले 10 वर्षों से लक्षण थे और वह कई दवाएं ले रहा था। प्रक्रिया के लिए मरीज की जांच डॉ. जसलोवलीन सिद्धू द्वारा की गई और विस्तृत मूल्यांकन के बाद उसे सर्जरी के लिए मंजूरी दे दी गई। डॉ. सिद्धू द्वारा मस्तिष्क के सबथैलेमिक न्यूक्लियस को नियोजित लक्ष्य बनाया गया था। मरीज़ पर सर्जरी का अच्छा असर हुआ और सर्जरी के बाद उसकी दवाएँ 50% तक कम कर दी गईं। रोगी अब अपनी अधिकांश गतिविधियाँ करने में सक्षम है, जिसके लिए उसे पहले सपोर्ट की आवश्यकता होती थी।
शुक्रवार को यहां एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए डॉ. जसलोवलीन कौर सिद्धू , हेड-पार्किंसंस डिजीज और मूवमेंट डिसआर्डर ने कहा, ''“यह मस्तिष्क के लिए पेसमेकर सर्जरी की तरह है जो मस्तिष्क में रखे गए इलेक्ट्रोड के विद्युत संकेतों को बदलकर लक्षणों को नियंत्रित कर सकती है। जिन मरीजों को डीबीएस सर्जरी की आवश्यकता होती है, उन्हें पार्किंसंस विशेषज्ञ न्यूरोलॉजिस्ट द्वारा जांच की जानी चाहिए और सर्जरी के लिए फिट घोषित किए जाने से पहले उन्हें यूपीडीआरएस परीक्षण से गुजरना होता है। इसके अलावा, चूंकि यह एक अवेक सर्जरी है, पार्किंसंस के विशेषज्ञों को पूरी सर्जरी के दौरान रोगी की निगरानी करनी होती है ताकि यह पुष्टि हो सके कि इलेक्ट्रोड मस्तिष्क में सटीक स्थान पर रखे गए हैं या नहीं।''
डॉ. अमन बातिश ने कहा, मरीजों को ऐसे सभी लक्षणों के विस्तृत मूल्यांकन की आवश्यकता होती है और उनकी उम्र, लक्षण और सहनशीलता के अनुसार उपचार की योजना बनाई जाती है। चूंकि पार्किंसंस रोग एक प्रगतिशील बीमारी है, इसलिए दवाएं लंबे समय तक अच्छा प्रभाव नहीं देती हैं और ऐसे मामलों में मस्तिष्क सर्जरी की योजना बनाने की आवश्यकता होती है। पार्किंसंस रोग के रोगियों के लिए डीप ब्रेन स्टिमुलेशन सर्जरी तब की जाती है जब कुछ वर्षों की दवा के बाद उनमें उतार-चढ़ाव विकसित होता है।
अमनप्रीत सिंह के अनुसार: “लगभग 4 साल के अंतराल के बाद अब मैं अपनी पगड़ी खुद बांध सकता हूं, क्योंकि इलाज से पहले मैं हाथ कांपने और जकड़न के कारण इसे नहीं बांध पाता था।“
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