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डायलसिस पर जी रहे लकवाग्रस्त पति को किडनी देकर दिया नया जीवनदान

*होशियारपुर, 20 जुलाई (  ): एक वक्त था जब किडनी दान करने वाले और मरीज के ब्लड ग्रुप एक से न होने पर ट्रांसप्लांट हो नहीं पाता था। पर अब लेटेस्ट और एडवांस्ड तकनीक की बदौलत यह बदल चुका है। यह बात जाने माने किडनी रोग माहिर डा. अन्ना गुप्ता ने आज होशियारपुर में आयोजित एक प्रैस कान्फ्रेंस को संबोधित करते हुए की, जिनके द्वारा हाल ही में एक ऐसे मरीज जो की बीते एक वर्ष से डायलसिस पर निर्भर थे, जिनकी पत्नी द्वारा अलग ब्लड ग्रुप के बावजूद उनकी किडनी ट्रांसप्लांट करवाकर उन्हें नया जीवनदान दिया गया है। इस अवसर पर उनके साथ डा. सुनील कुमार भी मौजूद थे।

फोर्टिस अस्पताल मोहाली रीनल साइंसेज और किडनी ट्रांसप्लांट के एसोसिएट कंसल्टेंट डॉ. अन्ना गुप्ता ने बताया कि एबीओ इनकम्पेटिबल किडनी ट्रांसप्लांट में किसी भी ब्लड ग्रुप के किडनी डोनर्स द्वारा कई जानें बचाई जा चुकी हैं। उन्होंने बताया कि ऐसे ही एक मामला जिसमें किडनी ट्रांसप्लांट के माध्यम से होशियारपुर के 48 वर्षीय व्यक्ति को नया जीवन दिया है। यह मामला इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि मरीज का ब्लड ग्रुप-ओ था और डोनर का ब्लड ग्रुप्र-ए था, फिर भी किडनी ट्रांसप्लांट को सफलतापूर्वक किया गया।

मरीज टाइप 2 डायबिटीज, क्रॉनिक लिवर डिजीज (सीकेडी) से पीडि़त था और उसके शरीर का बायां हिस्सा पिछले 1 साल से लकवाग्रस्त था। उनके पैरों में सूजन, पेशाब में झाग, सांस फूलने की समस्या हो रही थी जिसके बाद पिछले फरवरी में होशियारपुर स्थित एक अस्पताल में उनकी मेडिकल जांच कराई गई। रोगी को सीकेडी का निदान किया गया और उसे सप्ताह में दो बार हेमोडायलिसिस (रक्त से अपशिष्ट और पानी को फि़ल्टर करना) पर रखा गया। हालाँकि, जब उनके लक्षण कम नहीं हुए और डायलिसिस शेड्यूल ने उनके जीवन की गुणवत्ता में बाधा डाली, तो उन्होंने फोर्टिस अस्पताल, मोहाली में रीनल साइंसेज और किडनी ट्रांसप्लांट के एसोसिएट कंसल्टेंट डॉ. अन्ना गुप्ता से परामर्श लिया।

चूँकि मरीज़ का ब्लड ग्रुप-ओ था, उसी ब्लड ग्रुप वाली उनकी बहन को पहले दाता के रूप में मूल्यांकन किया गया था। हालांकि उसे अस्वीकार कर दिया गया क्योंकि उसे डायबिटीज का पता चला था और यूरिन में प्रोटीन का रिसाव था। ब्लड ग्रुप ए वाले रोगी की पत्नी को अंतत: डोनर के रूप में स्वीकार कर लिया गया क्योंकि परिवार में कोई अन्य उचित मिलान नहीं पाया जा सका।

सीनियर कंसल्टेंट और किडनी ट्रांसप्लांट सर्जन डॉ. गुप्ता और डॉ. सुनील कुमार की किडनी ट्रांसप्लांट सर्जरी टीम ने इस वर्ष मई में मरीज की सफल किडनी ट्रांसप्लांट सर्जरी की। समान ब्लड ग्रुप वाले ट्रांसप्लांट के विपरीत, रोगी को डी-सेंसिटाइजेशन (रक्त से एंटीबॉडी निकालना) से गुजरना पड़ा। सर्जरी के सात दिन बाद उन्हें 1.3 मिलीग्राम/डीएल के सीरम क्रिएटिनिन के साथ सफलतापूर्वक हस्पताल से छुट्टी दे दी गई और उन्हें कोई कॉम्प्लिकेशन नहीं हुई। वह आज पूरी तरह से ठीक हो गए हैं और सामान्य जीवन जी रहे हैं। डोनर को ऑपरेशन के चौथे दिन बिना किसी कॉम्प्लिकेशन के छुट्टी दे दी गई।

यह कहते हुए कि सीकेडी भारत में एक बढ़ती हुई स्वास्थ्य बीमारी है, डॉ. गुप्ता ने कहा, मधुमेह रोगियों और उच्च रक्तचाप वाले लोगों की जांच करना महत्वपूर्ण है। उन सीकेडी रोगियों को आशा नहीं खोनी चाहिए जिनके परिवार में सही डोनर है लेकिन ब्लड ग्रुप अलग है। ऑर्गन ट्रांसप्लांट साइंसेज में वर्तमान प्रस्तावित के साथ, एबीओ इनकम्पेटिबल किडनी ट्रांसप्लांट लगभग 90 प्रतिशत की सफलता दर के साथ किया जा सकता है।

एक सफल किडनी ट्रांसप्लांट प्रोग्राम के बारे में डॉ. गुप्ता ने कहा कि किडनी ट्रांसप्लांट प्रोग्राम के लिए किडनी ट्रांसप्लांट डोनर का सावधानीपूर्वक परे-ऑपरेटिव सेलेक्शन, किडनी ट्रांसप्लांट सर्जरी में विशेषज्ञता, पोस्ट-ऑपरेटिव देखभाल के उन्नत स्तर के साथ-साथ ट्रांसप्लांट सर्जन और ट्रांसप्लांट नेफ्रोलॉजिस्ट जैसी एक समर्पित टीम की आवश्यकता होती है।

किडनी ट्रांसप्लांट के महत्व पर प्रकाश डालते हुए, डॉ. सुनील कुमार ने कहा, डोनर्स का सावधानीपूर्वक चयन बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि एक सफल सर्जरी का परिणाम रोगी के लिए स्वस्थ जीवन सुनिश्चित करता है। साथ ही, मरीज़ सर्जरी के एक सप्ताह के भीतर घर लौट सकते हैं और अपनी सामान्य दिनचर्या की गतिविधियाँ फिर से शुरू कर सकते हैं। पहले तीन महीनों को छोडक़र, आहार संबंधी बहुत कम प्रतिबंध हैं। जहां तक एबीओ इनकम्पेटिबल किडनी ट्रांसप्लांट का सवाल है, यह तकनीकी रूप से चुनौतीपूर्ण है और सर्जिकल जटिलताओं से बचने के लिए इसे अच्छी तरह से नियोजित करना पड़ता है। हमारी टीम पिछले सात वर्षों से उत्कृष्ट परिणामों के साथ ऐसी जटिल सर्जरी कर रही है।

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