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हिंदी अध्यापिका मुक्ता शर्मा त्रिपाठी "मुक्तामणि-जीवन के सूत्र" विमोचित

चंडीगढ़:--बटाला के एक स्कूल में हिन्दी अध्यापिका मुक्ता शर्मा त्रिपाठी की नई पुस्तक "मुक्तामणि-जीवन के सूत्र" का यहाँ चंडीगढ़ में एक समारोह के दौरान विमोचन किया गया। इस अवसर संजीव शर्मा,  संयुक्त सचिव-शिक्षा विभाग मुख्य अतिथि सहित पारिवारिक सदस्य और मित्र भी मौजूद थे।
मुख्य अतिथि संजीव शर्मा ने मुक्ता शर्मा त्रिपाठी को उनकी बुक की शुभकामनाएं देते हुए कहा कि मुक्ता शर्मा त्रिपाठी जी शिक्षा के साथ साथ प्रेरणा से भरपूर किताबें भी निकाल रही है। यह बच्चों के मार्गदर्शन के लिए एक अच्छा प्रयास है। संजीव  शर्मा ने कहा कि उन्होंने बुक पढ़ी है। बुक में बड़े ही प्रभावशाली प्रेरक प्रसंग है। जो जीवन से जुड़े विभिन्न पहलुओं पर रोशनी डालते हैं।

बुक के बारे में जानकारी देते हुए मुक्ता शर्मा त्रिपाठी ने बताया कि "मुक्तामणि" अर्थात् पवित्र तथा कीमती मोती। यह अनमोल होते हैं। एक जौहरी इसके भौतिक तथा आर्थिक महत्त्व के कारण परन्तु विद्वान वैचारिक महत्त्व के कारण पूजा करता है। मणि केवल गहने बनाने या उनमें जड़ाऊ मोती के रूप में शोभा प्राप्त करने के ही कार्य में नहीं आती। 

उन्होंने आगे बताया कि प्रतीक रूप में मुक्ता-मणि का प्रयोग कई जगह पर किया जाता है। इस पुस्तक में भी मुक्तामणि का अर्थ वे बहुमूल्य विचार हैं, जो हमारे जीवन में प्रेरणा, उर्जा, सकारात्मक्ता तथा नवजीवन का संचार करें।
मुक्ता शर्मा त्रिपाठी ने आगे बताया कि  "मुक्तामणि- जीवन के सूत्र" पुस्तक का आधार कोविड के दौरान ही रखा गया था। उस समय अपने विद्यार्थियों से बात न कर पाने की कमी खलती थी। चाहे ऑनलाइन कक्षाएँ लग रहीं थीं। परन्तु जो उनसे कक्षा में प्रेरक विचारों का आदान-प्रदान होता था, उस प्रवाह को जीवंत करने के लिए सोशल मीडिया पर रोज़ एक मुक्तामणि बच्चों के सम्बंधित चित्रों के माध्यम से भेजना शुरू किया। मेरे विद्यालय के विद्यार्थियों, उनके अभिभावकों, मेरे साथी अध्यापकों, मेरे अपने बच्चों ने उसे बेहद पसंद किया, बेहद सराहा।
अमूर्त रूप में उस समय इस पुस्तक की आधारशिला रखने के बाद, आप सबकी शुभकामनाओं से अब ये स्वप्न मूर्त रूप में सत्य होने जा रहा है।

मेरे जीवन की सुख-दुःख की धूप-छाँव ने, विभिन्न धार्मिक ग्रंथों-पुस्तकों को पढ़ते हुए, जिस जीवन दर्शन ने मेरे दिल पर छाप छोड़ी, उसे मैं समेटना चाहती थी। अमर बनाना चाहती थी। अध्यापिका होने के नाते मेरे मन में आया कि मैं इन विचारों को अपने तक ही सीमित क्यों रखूँ?  क्यों न अपने विद्यार्थियों के साथ भी इनको सांझा करूँ! अब मेरे सामने दो पथ थे। एक पथ कविता लेखन द्वारा इन विचारों को विद्यार्थियों तक पहुंचाने का, दूसरा ज्यों के त्यों जैसे ये विचार मुझ संग रहे, उन्हें व्यक्त करना। दूसरा पथ अधिक उपयुक्त लगा क्योंकि यह बिना घुमाए- फिराए सीधी बात करने का ही समय है। 
आज के समय में नकारात्मक्ता के शोर में, सीधी बात करना ही श्रेयस्कर है। भावी पीढ़ी से बिना लाग-लपेट के सीधी बात करती ये मुक्तामणियाँ मेरे अनुभवों को कुछ शब्दों तथा संबंधित चित्रों संग उन तक पहुँचाने की कोशिश है। बाल मनोविज्ञान के अनुसार शब्दावली सरल मगर थोड़ा-सी प्रतीकात्मक रखी गई है ताकि हर उम्र के विद्यार्थी या बच्चे इससे जुड़ पाएँ। 
उन्होंने बताया कि प्रस्तुत पुस्तक में मैंने 100 प्रेरक विचार अर्थात 100 मुक्तामणियों को समाहित किया है। इस पुस्तक का पंजाबी अनुवाद भी उपलब्ध है।

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