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भारत में हर वर्ष 15 से 20 लाख लोग ब्रेन स्टोक से पीडि़त : डा. गौरव जैन

चंडीगढ़, 28 अक्तूबर : अल्केमिस्ट तथा ओजस अस्पताल पंचकूला के डाक्टरों की टीम ने विश्व स्ट्रोक दिवस के अवसर पर ब्रेन स्ट्रोक (दिमागी दौरे) तथा जीवन शैली संबंधी जागरूकता पैदा करने के लिए मीडिया को संबोधित किया। इस अवसर पर न्यूरोलॉजी के कंस्लटेंट डा. गौरव जैन, इंटरवेंशनल रेडियोलॉजी के सीनियर कंस्लटेंट डा. अमनदीप सिंह, न्यूरो सर्जरी के कंस्लटेंट डा. मुनीष बुद्धिराजा, न्यूरोलॉजी के कंस्लटेंट डा. राहुल महाजन तथा न्यूरो सर्जरी कंस्लटेंट डा. प्रशांत मसकारा मौजूद थे।डा. गौरव जैन ने पत्रकारों को संबोधित करते हुए कहा कि भारत स्ट्रोक एक नई महामारी के रूप में उभर रहा है, क्योंकि देश भर में हर वर्ष 15 से 20 लाख लोग इस बीमारी से पीडि़त होते हैं। असल गिनती इससे कहीं अधिक है, क्योंकि अधिकांश मरीज अस्पतालों या क्लीनिकों तक पहुंचते ही नहीं। उन्होंने बताया कि भारत में स्ट्रोक के रोजाना 3000-4000 केस सामने आते हैं, जिनमें से मुश्किल से 2-3 प्रतिशत का इलाज होता है। पूरे विश्व में एक लाख की आबादी के पीछे हर वर्ष 60-100 केस सामने आते हैं, जबकि भारत में एक लाख की आबादी के पीछे 140-145 केस सामने आते हैं। भारत में स्ट्रोक के मामलों के बढऩे का कारण जागरूकता की कमी है। उन्होंने यह भी बताया कि देश में हर वर्ष जितनी मौतें स्ट्रोक से होती हैं, इतनी एडज, तपदिक व मलेरिया से भी नहीं होती।

डा. गौरव ने यह भी बताया कि पूरी दुनिया में 60 प्रतिशत स्ट्रोक के मरीज सिर्फ भारत में है। बीते 4-5 दशकों दौरान इन केसों में 100 प्रतिशत इजाफा हुआ है।
डा. राहुल महाजन ने इस अवसर पर बोलते हुए कहा कि दिमाग का दौरा उस समय पड़ता है, जब दिमाग की किसी नाड़ी में खून का थक्का (कलॉट) आने या नाड़ी फटने के कारण दिमाग को रक्त की सप्लाई कम हो जाती है। उन्होंने बताया कि 87 प्रतिशत केस नाड़ी में कलॉट आने पर होते हैं, जिनका इलाज किया जा सकता है। उन्होंने बताया कि स्ट्रोक के मामले में समय की बहुत ज्यादा अहमियत है। उन्होंने बताया कि दौरा पडऩे के बाद हर मिनट में दिमाग के 19 लाख सैल नकारा हो जाते हैं, इसलिए मरीज को तुरंत निकटवर्ती अस्पताल ले जाना चाहिए। उन्होंने बताया कि 5 प्रतिशत स्ट्रोक डायबिटिज (शुगर), उच्च रक्तचाप तथा अधिक कैलेस्ट्रोल के कारण होते हैं।
डा. कर्नल अमनदीप सिंह ने पत्रकारों के साथ बातचीत करते हुए कहा कि खून के थक्के (कलॉट) के कारण पड़े दौरे का एक टीका लगाकर उस समय इलाज किया जा सकता है। यह दवाई कलॉट को खत्म कर देती है। यह तभी संभव है, जो कलॉट छोटा हो तथा मरीज को दौरा पडऩे पर साढ़े चार घंटों के अंदर-अंदर माहिर डाक्टरों के पास ले जाया जाए। उन्होंने बताया कि अब नई तकनीक मैकेनिकल थ्रोम्बैक्टॉमी आने से 24 घंटे के अंदर मरीज का इलाज किया जा सकता है। यह नई आधुनिक तकनीक अल्कैमिस्ट तथा ओजस अस्पताल पंचकूला में उपलब्ध है। इस तकनीक द्वारा बिना चीरफाड़ किए सफल इलाज संभव है। उन्होंने बताया कि मरीज को अस्पताल पहुंचाना ही अहम नहीं, बल्कि अस्पताल भी ‘स्ट्रोक रेडी अस्पताल’ होना चाहिए।

डा. मनीष बुद्धिराजा ने कहा कि भारत संक्रमण व बिना संक्रमण वाली बीमारियों के दोहरे बोझ का सामना कर रहा है। उन्होंने बताया कि भारत में हर वर्ष ब्रेन स्ट्रोक के 15-20 लाख मरीज अस्पतालों में आते हैं तथा यह अचानक मौत तथा अधरंग का सबसे बड़ा कारण है। मुंह में से लार बहना या किसी अंग हाथ-पैर में कमजोरी महसूस होना या सुन्न हो जाना स्ट्रोक के मुख्य लक्ष्ण है। डा. प्रशांत मसकारा ने कहा कि भारत जैसे देश में मुश्किल से 3 प्रतिशत मरीजों को ही थ्रोम्बैक्टॉमी विधि से इलाज मिलता है।

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