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अप्रैल के बाद से. 26 स्थित ट्रांसपोर्ट चौक की बदल जाएगी आबो-हवा

चंण्डीगढ ,Feb11,: वायु प्रदूषण प्रत्येक व्यक्ति को प्रभावित करता है- भले ही वह अमीर हो या गरीब, बुजुर्ग हो या युवा, पुरुष हो या महिला, शहरी हो या ग्रामीण। वायु प्रदूषण से कारण अनेक और विविध हैं। वायु प्रदूषण एक जटिल और बड़ा मुद्दा है जो सिर्फ़ नागरिकों के स्वास्थ्य पर ही नहीं बल्कि देश की अर्थव्यवस्था पर भी नकारात्मक प्रभाव डालता है। इनडोर और आउटडोर दोनों तरह से वायु प्रदूषण भारत में मौतों के प्रमुख कारणों में से एक है। सतत उपायों के साथ, कुछ वर्षों में हवा की गुणवत्ता में बदलाव लाया जा सकता है। वायु प्रदूषण से निपटने के मामले में भारतीय लोग नए विचारों से लबरेज हैं जिनमें मनोज जेना व नितिन आहलुवालिया भी शामिल हैं। घरों या कार्यालयों अथवा अन्य भवनों-इमारतों को अंदरूनी तौर पर वायु प्रदूषण रहित करने की तकनीक तो पहले से उपलब्ध है पर  इन दोनों बचपन के दोस्तों (मनोज जेना व नितिन आहलुवालिया) ने नवोन्मेष का इस्तेमाल किया व एक नई अवधारणा के तहत भीड़-भड़क्के वाले सार्वजनिक स्थलों को भी वायु प्रदूषण से मुक्त करने की तकनीक इजाद करने की ठानी व अथक प्रयासों के बाद आखिरकार सफलता हासिल की व इसका नामकरण किया "क्षल्"। ये एक संस्कृत का शब्द है जिसका अर्थ होता है साफ करना।
सिटी ब्यूटीफुल के नाम से मशहूर चंण्डीगढ़ ‌हालांकि देश-दुनिया के अन्य शहरों के मुकाबले काफी साफ सुथरा है व वायु प्रदूषण से भी इसका अधिकांश क्षेत्र मुक्त है पर फिर भी कुछेक क्षेत्रों में वायु प्रदूषण के खतरनाक स्तर को पार कर जाता है। स्थानीय प्रशासन ने शहर के चुनिंदा स्थानों पर वायु प्रदूषण का स्तर दर्शाने वाले इलैक्ट्रोनिक बोर्ड भी लगाए हुए हैं जिनसे रिकॉर्ड होता रहता है कि कहां, किस समय, कितना वायु प्रदूषण है।
मनोज जेना व नितिन आहलुवालिया ने सबसे पहले चंण्डीगढ को ही वायु प्रदूषण से निजात दिलाने का इरादा किया व इसके लिए पहले तो चंण्डीगढ प्रैस क्लब में प्रैस कांफ्रेंस कर मीडिया के जरिए अपने इस अविष्कार के बारे में आमो-खास जनता तक जानकारी पंहुचाई व फिर प्रशासन के सम्बंधित अधिकारियों से व्यक्तिगत तौर पर मिल कर अवगत कराया व प्रस्तुति दी।
कुछ दौर की बातचीत के बाद आखिरकार उन्हें पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर इस टाॅवरनुमा उत्पाद को शहर के सर्वाधिक वायु प्रदूषण प्रभावित क्षेत्र से. 26 स्थित ट्रांसपोर्ट चौक पर स्थापित करने की अनुमति मिल गई। ये एयर प्योरीफायर टाॅवर अप्रैल अंत तक स्थापित हो जाएगा। उसके बाद ट्रांसपोर्ट चौक की आबो-हवा गुणवत्तायुक्त हो जाएगी, ऐसा दावा है मनोज जेना व नितिन आहलुवालिया का। उन्होंने बताया कि यह प्रोजेक्ट पूरी तरह से मेक इन इंडिया के तहत बनाया जा रहा है और इसमें वोकल फाॅर लोकल की अवधारणा का पालन करते हुए स्टार्ट-अप इंडिया के तहत पंजीकृत भी कराया गया है। उन्होंने बताया कि देश भर में बड़े पैमाने पर ये टावर लगाने पर बड़ी संख्या में रोजगार के अवसर भी पैदा होंगे। एक टाॅवर को स्थापित करने में लगभग साढ़े तीन से चार करोड़ रूपए की लागत आएगी, जेना व आहलूवालिया ने जानकारी देते हुए बताया।
उनके मुताबिक देश व दुनिया में और भी लोग व कंपनियां इस दिशा में काम कर रही हैं परंतु उनके द्वारा आविष्कृत तकनीक बेहद एडवांस व कमी-खामी रहित है। उन्होंने बताया कि वे अन्य ऐसे उत्पादों के बारे में भी सारी जानकारी जुटा  कर अध्ययन कर चुके हैं। उनमें कोई भी उनके द्वारा इजाद उपकरण के जैसा सक्षम नहीं है। उन्होंने यह भी बताया कि दुनिया में एकमात्र एयर प्योरीफायर चीन की राजधानी बीजिंग में स्थापित किया गया है परंतु एक तो उसकी लागत एक हजार करोड़ रुपए बैठी, जो उनके उत्पाद के मुकाबले बेहद ज्यादा है। ऊपर से गुणवत्ता के मामले में भी वह *क्षल्* के सामने कहीं नहीं टिकता

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