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आपसी प्रेम और विश्वास जितना अधिक होगा परिवार का आधार उतना ही सुदृढ़ होगा: क्षुल्लक श्री प्रज्ञांशसागर जी

चंडीगढ़:-परम पूज्य श्रमण अनगाराचार्य श्री विनिश्चयसागर जी गुरुदेव के शिष्य परम पूज्य जिनवाणी पुत्र क्षुल्लक श्री प्रज्ञांशसागर जी गुरुदेव ने चौंषठ ऋद्धि विधान के पावन अवसर पर कहा — परिवार माला के समान है जिसके सभी मनके (मोती) परिवार में एक दूसरे से जुड़े रहते हैं और

इनको जोड़ने का कार्य आपस में वात्सल्य भाव और विश्वास करता है आपसी प्रेम और विश्वास जितना अधिक होगा परिवार का आधार उतना ही सुदृढ़ होगा। सप्ताह में सात बार होते हैं अगर सवाल किया जाए कि सबसे अच्छा बार कौन सा होता है तो मेरा जवाब होगा कि सबसे अच्छा बार होता है परिवार। परिवार यदि जुड़ा रहता है किसी व्यक्ति की ताकत नहीं कि वह आपके परिवार को तोड़ सके और यदि परिवार का एक ही व्यक्ति इधर-उधर हो जाए तो परिवार का विनाश होने में देरी नहीं लगती। पांडव पांच भाई थे एक साथ रहे सारे युद्ध को जीत लिया परन्तु रावण ने अपने सगे भाई को घर से निकाल दिया सारा परिवार नष्ट हो गया और युद्ध को भी हार गया। परिवार में एकता बहुत जरूरी है। आज परिवार तो है परन्तु परिवार में एकता नहीं है। जो कि वर्तमान में सबसे ज्यादा जरुरत इसकी ही है। आज हम भगवान से शिकायत करते हैं कि हमको यह नहीं मिला, वह नहीं मिला लेकिन कभी हम यह नहीं सोचते हैं कि — हमें जो मिला, जैसा मिला इसके लिए बहुत से लोग तरसते हैं..। हम भाग्यशाली हैं जो हमें यह सब वस्तुएं उपलब्ध हो रही है। हमारे पूर्व पुण्य का उदय है जो हमें सुख-सुविधाएं उपलब्ध हो रही हैं लेकिन यदि हम पुण्य के उदय से प्राप्त वस्तुओं पर अभिमान करते हैं, गुमान करते हैं, अहंकार करते हैं तो समझ लीजिए हमारा उल्टा समय प्रारम्भ होने वाला है। और यदि आप हर घटना को प्रभु का प्रसाद मानकर स्वीकार करते हैं उसका सदुपयोग करते हैं तो जो चीज आपको आज उपलब्ध हैं उससे अधिक निश्चित रूप से आपको कल प्राप्त होने वाली हैं। और यदि आप गर्व करते हैं, अहंकार करते हैं तो निश्चित रूप से समझ लीजिए आपको जो प्राप्त हुआ है वह भी आपके हाथ से जाने वाला है। हमारे पास पौराणिक उदाहरण भी हैं रावण के पास सोने की लंका थी और साथ में अहंकार था। राम वनवासी थे लेकिन उनके साथ विनम्रता थी तो जिसके पास सोने की लंका थी वह रंक बन गया और जो वन में विचरण करने वाले थे वे परमेश्वर बन गए। यदि आप भी अपने जीवन में उन्नति-उत्थान करना चाहते हैं पतित से पावन बनना चाहते हैं भक्त से भगवान बनना चाहते हैं तो अभिमान, अहंकार, काम, क्रोध आदि विकारों को अपने आप से दूर रखें क्योंकि जब तक यह आपके पास रहेंगे आपको आगे बढ़ने से, आपको ऊपर उठने से रोकते रहेंगे और जैसे ही आप इनको अपने से अलग करते हो आप भी परमात्म प्रभु महावीर के पास पहुंच सकते हैं।

चंडीगढ़ के इतिहास में प्रथम बार पूज्य क्षुल्लक श्री प्रज्ञांशसागर जी गुरुदेव के मुखारविंद से श्रीमज्जिनेन्द्र अष्टोत्तर शत (108) महामन्त्र शान्तिधारा कराई गई। जिसमें विधान करता परिवार श्रीमान धर्म बहादुर जैन एवं जैन समाज के प्रतिष्ठित वयोवृद्ध साधर्मी श्रीमान नवरत्न जैन, श्रीमान संत कुमार जैन आदि ने मिलकर खूब हर्षोल्लास के साथ भाग लिया।
बाल ब्रह्मचारी पुष्पेंद्र भैया दिल्ली के निर्देशन में सिद्धचक्र महामंडल विधान में आज चौषठ ऋद्धि विधान की स्वर लहरियां गूंजी जिसमें बहुत भारी संख्या में लोगों ने सम्मिलित होकर धर्म लाभ लिया और आज का कार्यक्रम सानंद संपन्न हुआ।

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