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केवल सर्वसम्मति से चुनी गई पंचायतें ही अदालतों का बोझ कम कर सकतीं हैं : जस्टिस रणजीत सिंह

चण्डीगढ़ : देश की अदालतों में करोड़ों मामले लंबित हैं और आम जनता को न्याय मिलने में अनेक वर्ष लग जाते हैं।  इस समस्या के हल के लिए पंजाब-हरियाणा उच्च न्यायालय के पूर्व जस्टिस रणजीत सिंह, जो पवित्र गुरुग्रंथ साहिब बेअदबी न्यायिक आयोग के पूर्व चेयरमैन भी रहें हैं, ने कहा कि देश की अदालतों में जमीनी विवादों से संबंधित लंबित अधिकतर मसलों को जिला स्तर से लेकर सुप्रीम कोर्ट के बजाए ग्रामीण पंचायतें बेहतर तरीके से निपटा सकती हैं, बशर्तें कि ये पंचायतें पार्टीबाजी अथवा किसी अन्य धड़ेबाजी को छोड़ कर सर्वसम्मति से चुनी गई हों।  
जस्टिस रणजीत सिंह ने लोक-राज पंजाब, कीर्ति किसान मंच, भगत पूरन सिंह जी पिंगलवाड़ा सोसायटी, संस्कृति और विरासत संरक्षण मंच, उत्तम-खेती किसान यूनियन, पूर्व सैनिक और युवा मंच की संयुक्त मुहिम लोक एकता मिशन से जुड़ने के बाद आज यहां चण्डीगढ़ प्रेस क्लब में आयोजित एक पत्रकार वार्ता को सम्बोधित करते हुए कहा कि पंजाब में आने वाले कुछ अर्से में पंचायती चुनाव होने संभावित हैं जिनमें गाँव-गाँव जाकर लोक एकता मिशन इन पंचायती चुनावों में सर्वसम्मति बनाने में जुटेगा। इसी सन्दर्भ में उन्होंने कहा कि केवल निष्पक्ष पंचायतें ही प्रभावी सुशासन का मार्ग प्रशस्त कर सकती हैं और ग्रामीण पंजाब को और अधिक पतन से बचा सकती हैं। सर्वसम्मति से चुनी गई ग्राम पंचायतें राजनीतिक गुटबाजी के कारण गांवों में व्याप्त गुटबाजी, हिंसक प्रतिद्वंद्विता, अवांछित मुकदमेबाजी और विनाशकारी प्रतिस्पर्धा जैसी विभिन्न बुराइयों से पीड़ित गांवों में सद्भाव बहाल करेंगी। इससे ग्रामीण विकास और गांवों के आधुनिकीकरण में तेजी लाने में भी मदद मिलेगी। उन्होंने जानकारी दी कि 2024 के आंकड़ों के अनुसार, 5.1 करोड़ अदालती मामले लंबित हैं जिनमें से 30 वर्षों से अधिक समय से लंबित मामलों में से 87 फीसदी यानी 4.5 करोड़ मामले जिला अदालतों में हैं। विभिन्न अदालतों में लगभग 25% मामले और सर्वोच्च न्यायालय में लगभग 66% मामले केवल भूमि और संपत्ति विवादों से संबंधित हैं जिन्हें पंचायतें आसानी से हल कर सकती हैं। जिनका निपटारा आज भी लोक अदालतों में समझौते करवा कर किया जा रहा है।  उन्होंने कहा कि सर्वसम्मत पंचायतें न्यायपालिका को तेजी से समय पर न्याय देने में मदद करेंगी। इससे कानून-व्यवस्था में जबरदस्त सुधार होगा और ग्रामीण अर्थव्यवस्था में कई गुना वृद्धि होगी। उन्होंने कहा कि ग्रामीण संकट का एक प्रमुख कारण यह है कि पंचायतें जो मूल रूप से स्थानीय सरकारें हैं, राजनीतिक गुटबाजी के कारण अप्रभावी, अपंग और बेजान हो गई हैं और लोगों का विश्वास खो रही हैं।
स्वर्ण सिंह बोपाराय, पूर्व आईएएस, पद्मश्री, कीर्ति चक्र, पूर्व केंद्रीय सचिव, पंजाबी यूनिवर्सिटी के पूर्व कुलपति व कीर्ति किसान फोरम के अध्यक्ष ने कहा कि कानूनी इतिहास और अपराध के आँकड़े स्पष्ट रूप से गन्दी राजनीति की शिकार पंचायती  संस्थाओं की विश्वसनीयता खोने के बाद अपराध दर में लगातार कई गुना वृद्धि दर्शाते हैं। उन्होंने कहा कि राजनीतिक गुटबाजी ने पक्षपातपूर्ण पंचायतों के माध्यम से जड़ें जमा ली हुई हैं और सर्वसम्मति से चुनी गई तटस्थ पंचायतों का स्थान ले लिया है, जोकि दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है। उनके मुताबिक राजनीतिक गुटों की पक्षपातपूर्ण पंचायतों ने स्थानीय सरकार की न्यायिक और प्रशासनिक स्थिति को त्याग दिया है। इससे जमीनी स्तर की लोगों की संसद यानी पंचायत कि व्यवस्था ढह गई है। उन्होंने आगे कहा कि जो विवाद स्थानीय सरकार यानी पंचायत स्तर पर आसानी से हल किए जा सकते हैं, उनमें अदालतों में लंबित मामलों का 50 फ़ीसदी हिस्सा होता है।     
इस अवसर पर मौजूद  लोक राज पंजाब के अध्यक्ष व लोक एकता मिशन के संयोजक डॉ. मंजीत सिंह रंधावा तथा  संस्कृति और विरासत संरक्षण के अध्यक्ष एडवोकेट गुरसिमरत सिंह रंधावा, जिन्होंने अप्रैल 2016 में दिल्ली में न्यायपालिका के एक राष्ट्रीय सम्मेलन के दौरान सरकारी उदासीनता को उजागर किया था, भी मौजूद थे। इन्होने बताया कि लोक एकता मिशन ने महसूस किया है कि कानून का पालन करने वाले सभी नागरिकों को उनके सम्मान के साथ जीने के अधिकार से वंचित कर दिया गया है। सबसे शांतिपूर्ण और स्वस्थ ग्रामीण समुदाय होता है जो इन विवादों के शांतिपूर्वक निपटारे के लिए आपसी सहमति के लिए सक्षम है। 
इन सभी ने दृढ़तापूर्वक अपने मिशन को सिरे लगाने का संकल्प लिया।

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