बंगाल, ब्यूरो चीफ अच्छेलाल:, परम श्रद्धेय सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज एवं सत्कार योग्य निरंकारी राजपिता रमित जी की पावन छत्रछाया में आज दुर्गापुर (पश्चिम बंगाल) में भव्य निरंकारी संत समागम का दिव्य आयोजन सम्पन्न हुआ। इस पावन अवसर पर पश्चिम बंगाल, ओड़िशा तथा उत्तर-पूर्वी राज्यों से काफी संख्या में संत महात्मा पधारे और इस आध्यात्मिक महासंगम के साक्षी बने। सभी भक्तों ने सत्संग रूपी अमृत का रसपान करते हुए अपार आनंद की अनुभूति की।
समागम के दौरान समस्त वातावरण प्रेम, शांति और एकता की दिव्य सुगंध से महक उठा।
श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए सतगुरु माता जी ने फरमाया कि भक्ति की कोई आयु सीमा नहीं होती। जैसे ही हमें निरंकार प्रभु का सच्चा ज्ञान प्राप्त होता है, उसी क्षण से भक्ति की यात्रा का आरंभ हो जाता है। भक्तों के जीवन में भी अनेक उतार–चढ़ाव आते हैं, परंतु उनकी लगन और चेतना सदैव निरंकार प्रभु परमात्मा से जुड़ी रहती है। वे हर परिस्थिति को उसी की दात समझकर स्वीकार करते हैं और बिना किसी कठिनाई के, सरलता, सहजता एवं आनंद के साथ अपने जीवन को आगे बढ़ाते चले जाते हैं।
अंत में सतगुरु माता जी ने कहा कि ब्रह्मज्ञान की अमूल्य दात प्राप्त कर ब्रह्मज्ञानी संत अपने जीवन को श्रेष्ठ, सार्थक एवं मुबारक बना लेते हैं। वे स्वयं तो आनंदमय जीवन व्यतीत करते ही हैं, साथ ही दूसरों को भी प्रेम, शांति और आनंद से परिपूर्ण जीवन जीने की प्रेरणा देते हैं।
समागम स्थल पर की गई सभी व्यवस्थाएँ अत्यंत सुदृढ़ एवं अनुकरणीय रहीं। लंगर, प्याऊ, चिकित्सा सुविधा, पार्किंग तथा अन्य आवश्यक प्रबंधों ने आगंतुकों को सहजता और संतोष का अनुभव प्रदान किया।
संत समागम से पूर्व 19 व 20 दिसंबर को ‘निरंकारी यूथ सिम्पोजियम’ का आयोजन किया गया, जिसका उद्देश्य युवाओं की सकारात्मक ऊर्जा को जागृत कर उन्हें आध्यात्मिकता की ओर प्रेरित करना था। पश्चिम बंगाल, ओड़िशा और उत्तर-पूर्वी राज्यों से आए असंख्य युवाओं ने उत्साहपूर्वक भाग लेते हुए विभिन्न सांस्कृतिक एवं रचनात्मक गतिविधियों में अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन किया।
‘द सिक्स एलीमेंट्स (छः तत्व)’ - पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश और चेतना पर आधारित स्किट, गीत, प्रस्तुतियाँ और पैनल डिसकशन के माध्यम से युवाओं को यह प्रेरणा दी गई कि आध्यात्मिक मूल्यों को जीवन की व्यवहारिकता में कैसे उतारा जाए।
इसके अतिरिक्त रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रमों, शारीरिक व्यायाम, खेल गतिविधियों एवं लोकनृत्यों द्वारा युवा श्रद्धालुओं ने अनुशासन, उत्साह, ऊर्जा और आध्यात्मिक सौंदर्य का सुंदर समन्वय प्रस्तुत किया।
यह सिम्पोजियम केवल एक कार्यक्रम भर नहीं था, अपितु इसका उद्देश्य युवा पीढ़ी को आध्यात्मिकता से जोड़ते हुए उनमें सेवा, एकता और समर्पण की सच्ची भावना को जागृत करना था। निसंदेह आध्यात्मिक शांति, प्रेम और विश्वबंधुत्व के इस दिव्य संगम ने भक्तों एवं आने वाले अनुयायियों के जीवन को सार्थकता प्रदान करी, जहां हर हृदय ने सेवा, समर्पण और सत्य की भावना से ओत-प्रोत होकर आत्मिक आनंद की दिव्य अनुभूति किया।
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