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कैकेई ने दिया,राम को वनवास,फिर कैसे हुआ- "कैकई का राम"

चंडीगढ़:-आज दिनांक 4 फरवरी 2025 को चंडीगढ़ के टैगोर थियेटर में संवाद थियेटर ग्रुप ने डिपार्टमेंट ऑफ कल्चरल अफेयर्स चंडीगढ़ के सहयोग से "संस्कृति संवर्धक रत्न" समारोह एवं हिंदी नाटक "कैकेई का राम" की प्रस्तुति की। संस्कृति संवर्धक रत्न, पुरस्कार का उद्देश्य उन प्रतिभाओं को सम्मान देना है  जो भारतीय संस्कृति, सभ्यता एवं मूल्यों के संरक्षण एवं संवर्धन कर रहे है। इस वर्ष यह सम्मान चंडीगढ़ की भिन्न भिन्न संस्थाओं से संबंधित छह व्यक्तियों को दिया गया जो इस प्रकार से है, गढ़वाल रामलीला एवम दशहरा मंडल बिजली बोर्ड के अध्यक्ष श्री सोहन सिंह गुसाईं,हिन्दू पर्व महासभा के प्रधान श्री भजन प्रकाश अरोड़ा, वरिष्ठ अधिवक्ता एवं श्री सतिंदर सिंह, वरिष्ठ फोटो जनरलिस्ट श्री सुनील शर्मा, वरिष्ठ पत्रकार श्री नीरज कुमार एवं श्री राम उत्सव कमेटी के प्रधान श्री राजिंदर बग्गा 
 कार्यक्रम के मुख्य अतिथि के रूप में श्रीमान प्रमोद कुमार, क्षेत्र संयोजक, सामाजिक समरसता तथा अति विशिष्ट अतिथि के रूप में सुप्रसिद्ध फिल्म अभिनेता श्रीमान बी. एन शर्मा उपस्थित रहे। वहीं जनसेवा वेलफेयर सोसाइटी के प्रेसिडेंट अश्विनी सिंगला समारोह में बतौर गेस्ट ऑफ ऑनर उपस्थित हुए। कार्यक्रम के दूसरे चरण में हिंदी नाटक " कैकेई का राम" प्रस्तुत किया गया। इस प्रस्तुति का आरंभ श्री राम के राज्य अभिषेक की घोषणा से हुआ तथा अंत रावण वध पर हुआ। कैकेई की दृष्टि से दिखाए गए इस  नाटक में कैकई बताती है कि उसने अपने वर केवल भरत की राजा बनाने के लिए नहीं मांगे थे अपितु उसका लक्ष्य 
अयोध्या सीमा क्षेत्र के साथ  लगने वाले अन्य सभी क्षेत्र जो राक्षस एवं राक्षस प्रवृति से पीड़ित है।  वहाँ के ऋषी ,मुनी एवं जन साधारण में उनका प्रतिरोध करने का साहस नहीं है । राक्षसों की  क्रूरता के कारण वे सभी संगठित भी नहीं हो पा रहे हैं ।  संगठित करने के लिए मानव राम को लोगों के बीच रह कर उनकी शक्तियों को जगाना होगा, भेदभाव समाप्त कर समन्वय बनाना होगा , फिर वही जनमानस राक्षसों एवं राक्षस प्रवृति वाले रावण का प्रतिरोध कर सकेंगे । और राजा राम सिंहासन पर बैठकर ये सब नहीं कर सकता । इस नाटक की विशेष बात यह थी कि 54 कलाकारों द्वारा प्रस्तुत किए गए नाटक में 5 वर्ष से लेकर 60 वर्ष तक के कलाकारों ने अभिनय किया। 
इस नाटक को श्रीमती रजनी बजाज ने निर्देशित किया और सहायक निर्देशन हिमांशी राजपूत का रहा।

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