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एस्पीडोस्पर्मा फेफड़ों की कार्य प्रणाली के लिए रामबाण

Chandigarh,April,27:कोरोना के बढ़ते दुष्प्रभाव के बीच में ज्यादातर बुरी खबरें ही सामने आ रही हैं। वर्तमान में सबसे बुरी खबर लोगों के बीच यह आ रही है, ऑक्सीजन की कमी हो जाना है। इस कमी से पूरा देश त्रस्त है। जानकारों के मुताबिक कोरोना शरीर में पहुंच कर फेफड़ों को संक्रमित करते हुए उनकी कार्य क्षमता में कमी कर देता है, जिसके फलस्वरूप पीड़ित व्यक्ति की मृत्यु भी हो जाती है। इस ऑक्सीजन की कमी को पूरा करते हुए केंद्र और राज्य सरकारों के साथ निजी क्षेत्र भी प्रयासरत हैं। अब इस अंधेरे में उम्मीद की एक मशाल होम्योपैथिक ने जताई है। इस बाबत बात करते हुए होम्योपैथिक को समर्पित डॉक्टर अनु कांत गोयल ने बताया कि होम्योपैथिक ने *एस्पीडोस्पर्मा* फेफड़ों की कार्य प्रणाली के लिए रामबाण है। उन्होंने कहा कि अस्थमा के मरीजों में जिन्हें अक्सर ऑक्सीजन की कमी से जूझना पड़ता है या सांस लेने संबंधित समस्याओं का सामना करना पड़ता है, उन मरीजों पर इस दवा का अचूक इस्तेमाल हुआ और बेहद कामयाब नतीजे मिले, मतलब यह दवा फेफड़ों और सांस संबंधी बीमारियों में कारगर है। इसका विवरण देते हुए डॉ अनु कांत गोयल ने बताया कि सन 1927 में सैन फ्रांसिस्को के डॉक्टर विलियम बोरिक ने अपने मैटीरिया मेडिका ने स्पष्ट किया कि यह दवा रेस्पिरेट्री केन्द्र के द्वारा ऑक्सीडेशन में आने वाली रुकावट को खत्म करती है और ब्लड की ऑक्सीडेशन को नियमित करती है। आम आदमी की भाषा में समझे तो मोटे तौर पर फेफड़े को ठीक कर के शरीर में ऑक्सीजन को सुचारू रूप से काम करने में मदद करती है, जिसका सदुपयोग कोरोना के उन मरीजों के द्वारा किया जा सकता है जिनको ऑक्सीजन की कमी हो सकती है। यह बीमारी जिस तरह पैर पसार रही है लेकिन इंसानी जमात भी अपने तौर-तरीकों से इस बीमारी को पूरी तरह से टक्कर देगी। डॉ अनुकांत गोयल ने बुझे मन से यह बात भी कही कि भले ही सरकार होम्योपैथी को इलाज तंत्र का एक हिस्सा समझती है लेकिन एलोपैथिक जैसे यकीन अभी भी नहीं करती, अभी भी होम्योपैथी इलाज का दोयम दर्जे का माना जाता है होम्योपैथिक के साथ ऐसा अन्याय किया जाता है, लेकिन माना नहीं जाता

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