Chandigarh:अगले महीने दिल्ली में नई सरकार चुनने के लिए चुनाव होने वाले हैं। जैसे ही चुनाव आयोग ने तारीखों की घोषणा की, राजनीतिक पार्टियों ने अपने-अपने काम जनता के सामने रखना शुरू कर दिया है। पिछले 10 सालों से दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार है, जिसने शिक्षा की सुविधाएं मुफ्त देकर इसे अपनी बड़ी उपलब्धि के रूप में पेश किया है। लेकिन यह तो किसी भी राज्य सरकार का कर्तव्य है कि वह अपने नागरिकों को किफायती दरों पर बेहतर सुविधाएं दे। इसके अलावा, दिल्ली सरकार अपने शिक्षा मॉडल को देश का सर्वश्रेष्ठ बताने का दावा करती रही है।
दिल्ली में मुख्यतः तीन प्रकार के स्कूल हैं—राज्य सरकार के स्कूल, केंद्रीय सरकार के स्कूल, और निजी स्कूल। मौजूदा सरकार ने बार-बार निजी स्कूलों पर अधिक फीस लेने के आरोप लगाए हैं। लेकिन सरकार ने यह कभी नहीं बताया कि जनता के टैक्स का कितना पैसा एक छात्र पर खर्च हो रहा है। सेंटर फॉर सिविल सोसाइटी के सीनियर फेलो नितेश आनंद के अनुसार, दिल्ली सरकार हर साल एक सरकारी स्कूल के छात्र पर लगभग ₹90,000 खर्च करती है, जो की देश के कुछ राज्यों में सबसे ज्यादा है।
यहां सवाल उठता है कि यदि सरकार इस ₹90,000 का आधा पैसा जनता को डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर (DBT) के माध्यम से दे, तो हर बच्चा अपनी पसंद के स्कूल में बेहतर शिक्षा प्राप्त कर सकता है। वर्तमान में, सरकारी स्कूलों का बड़ा हिस्सा केवल प्रशासन और शिक्षकों की सैलरी पर खर्च हो रहा है। इसके बावजूद दिल्ली सरकार ने अब तक जनता को यह आंकड़े जारी नहीं किए ताकि जनता को सही जानकारी मिल सके।
हम दिल्ली की जनता जानना चाहते हैं कि क्या केजरीवाल सरकार इस चुनाव में इस मुद्दे पर जवाब देगी? चुनाव के दौरान नेताओं से यह सवाल जरूर पूछें कि जनता के पैसे का बेहतर तरीके से इस्तेमाल क्यों नहीं हो सकता, और क्या यह मॉडल वास्तव में दिल्ली की जनता के लिए सही है?
आपका यह सवाल आने वाले समय में शिक्षा के भविष्य को तय कर सकता है।
अनिल कुमार मौर्या
प्रोग्राम एसोसिएट - NISA Education
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