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ईश्वर की यथावत आज्ञा का पालन करना ही धर्म: आचार्य विष्णु मित्र वेदार्थी

चंडीगढ़। श्रावणी पर्व के उपलक्ष्य में आर्य समाज सेक्टर 7-बी, चण्डीगढ़ में अध्यात्मिक व्याख्यान एवं भजनों का आयोजन किया गया। प्रवचन के दौरान आचार्य विष्णु मित्र वेदार्थी ने कहा कि महर्षि दयानंद सरस्वती जी धैर्य और परोपकार की भावना से भरे हुए थे। धर्म का अर्थ कर्तव्य है। जिससे ईश्वर प्राप्ति हो जाए, वही सभी कर्म धर्म हैं। उन्होंने बताया कि महर्षि मनु जी को एकाग्रचित होकर परमात्मा से संदेश मिला कि जो व्यक्ति विपरीत परिस्थिति के अधीन न हो वही धर्म को जान सकता है। महर्षि दयानंद सरस्वती जी ने धर्म का स्वरूप बताते हुए कहा कि ईश्वर की यथावत आज्ञा का पालन करना ही धर्म है। यदि हमारा मन पवित्र है और अंतःकरण की निकली हुई आवाज परमात्मा की ही होती है। परोपकारी का भाव रखकर कर्म करना धर्म है। ईश्वर एक है और उसका विधान न्याय चरण एक जैसा ही है। सनातन सर्वव्यापक ईश्वर में विश्वास रखता है। बिना कर्ता के कोई कर्म नहीं हो सकता है। वेदार्थी ने कहा कि संसार में हर जगह क्रिया हो रही है। चोरी न करना, धर्म का लक्षण है। महर्षि दयानंद सरस्वती ने बताया कि ईश्वर सदा रहता है।  वह सनातन है जो सदा से हो वह सनातन आर्य है। महर्षि दयानंद कहते थे कि महाभारत में श्री कृष्ण का इतिहास अति उत्तम है। श्री कृष्ण महान योगी है. उन्होंने  जन्म से मरण तक एक भी पाप नहीं किया था। वैदिक धर्म का मूल परमपिता परमात्मा वेद है। परमपिता परमात्मा सदा रहने वाला है। आचार्य विष्णु मित्र वेदार्थी ने कहा कि मन की शक्तियों के विकसित होने पर ही व्यक्ति विकास कर सकता है।  भगवान कभी जताता नहीं है।  बुद्धि की महत्ता को समझना अति जरूरी है। गंदे विचारों से मन पर काली छाप पड़ती है। कल्याणकारी संकल्प से मन पवित्र होता है। कार्यक्रम के बीच- बीच में केबीडीएवी स्कूल सेक्टर 7 के अध्यापक राजेश वर्मा ने मधुर भजनों से उपस्थित जनों को आत्मविभोर कर दिया। इस मौके पर आर्य समाज के प्रधान रविन्द्र तलवाड़, जस्टिस एएल बाहरी, प्रकाश चंद्र शर्मा, डॉ विनोद कुमार शर्मा, आनंदशील शर्मा, सुरेश कुमार सहित चंडीगढ़, पंचकूला और मोहाली की आर्य समाजों  और डीएवी शिक्षण संस्थाओं के अध्यापकगण भी उपस्थित थे।  

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